बजट नहीं जज़्बा चाहिए: 2 साड़ियों और एक टेंट के साथ निकलीं सरस्वती अय्यर की ज़ीरो बजट भारत यात्रा

Saraswati Iyer, सरस्वती अय्यर

जब यात्रा की बात आती है, तो हम में से ज़्यादातर लोग टिकट, होटल, खाना और शॉपिंग जैसे खर्चों का हिसाब लगाते हैं। लेकिन तमिलनाडु के मदुरै शहर की रहने वाली 30 वर्षीय सरस्वती अय्यर ने इस सोच को बिल्कुल उल्टा कर दिया। उन्होंने न पैसे की चिंता की, न होटल की बुकिंग की और न ही किसी लक्ज़री कीबस दो साड़ियाँ, एक छोटा टेंट, एक पावर बैंक और हिम्मत ले कर निकल पड़ीं भारत को पैदल देखने।

सरस्वती अय्यर ने नौकरी छोड़ शुरू की नई ज़िंदगी

सरस्वती अय्यर कभी एक कॉर्पोरेट फर्म में काम करती थीं। नियमित 9 से 5 की नौकरी, अच्छे वेतन और आरामदायक जीवन के बावजूद उन्हें कुछ अधूरासा महसूस होता था। वह हमेशा से आज़ादी से जीना चाहती थीं, लेकिन सामाजिक दबाव और सुरक्षा की चिंता उन्हें रोकती रही। फिर एक दिन उन्होंने फैसला लियाअब या कभी नहीं। उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी, सारे मटेरियलिस्टिक सामान बेच दिए और एक साधारण रूट तय करके निकल पड़ीं भारत भ्रमण परबिना टिकट, बिना प्लान और बिना बजट के।

सिर्फ दो साड़ियाँ और एक टेंट

सरस्वती अपने साथ कोई बड़ा बैग या लगेज नहीं ले गईं। उनके पास बस एक छोटा सा बैग था, जिसमें दो साड़ियाँ, एक तौलिया, कुछ ज़रूरी दवाइयाँ, एक टेंट, मोबाइल, पावर बैंक और एक नोटबुक थी। उन्होंने सोशल मीडिया पर अपने इस सफर को “Zero Budget Solo Travel” नाम दिया और शुरु आत की एक नई तरह की यात्रा की।

कैसे चलती है सरस्वती अय्यर की ज़ीरो बजट यात्रा?

सरस्वती ने अपनी यात्रा में ना तो कैब ली, ना ट्रेन टिकट, ना होटल बुक किया। वह गांवगांव पैदल चलतीं, कभी ट्रक वालों से लिफ्ट लेतीं और जहां जगह मिलती, वहीं टेंट लगाकर रात बितातीं। खाना कभी गुरुद्वारों में, कभी मंदिरों में और कई बार गांव वालों के घर पर उन्हें मिला। बदले में वह बर्तन धो देतीं, बुज़ुर्गों की मदद कर देतीं या बच्चों को पढ़ा देतीं। उनका कहना है, “अगर आप दिल से कुछ करना चाहते हैं तो रास्ते अपने आप बनते हैं। मेरे लिए हर गांव, हर इंसान एक नया सबक लेकर आया।

सेफ़्टी बनी सबसे बड़ा सवाल—but she cracked it

एक अकेली महिला का भारत में ज़ीरो बजट ट्रैवल करना आसान नहीं होता। पर सरस्वती के हिम्मत ने यह साबित किया कि इरादे पक्के हों तो डर भी पीछे हटता है। उन्होंने बताया कि वह हमेशा अपने लोकेशन को दोस्तों और परिवार के साथ शेयर करती थीं, और सोशल मीडिया के ज़रिए अपने फॉलोअर्स से जुड़ी रहती थीं। इसके अलावा, उन्होंनेसेफ़ गर्लनाम से एक डिजिटल हैंडल भी शुरू किया, जहां वह महिला यात्रियों को ट्रैवल टिप्स और सुरक्षा के उपाय सिखाती हैं।उनका मानना है कि आत्मनिर्भर और सतर्क रह कर महिलाएं भी सुरक्षित रूप से अकेली यात्रा कर सकती हैं।

हर राज्य में नई कहानी

सरस्वती की यह यात्रा महज ट्रैवल नहीं थी, बल्कि एक आत्मअन्वेषण का सफर था। उन्होंने महाराष्ट्र के वारली जनजातियों के साथ समय बिताया, राजस्थान में बंजारों की जीवनशैली को करीब से जाना, उत्तराखंड में पहाड़ी गाँवों की सादगी को महसूस किया और पूर्वोत्तर भारत की मेहमाननवाज़ी से मंत्रमुग्ध हुईं। हर जगह उन्होंने नई संस्कृतियाँ, भाषाएँ और रिश्ते देखेजिनमें से कोई भी पैसों से नहीं, बल्कि इंसानियत से जुड़ा था।

लोगों से मिला असीम प्यार

इस सफर के दौरान उन्हें कई बार मुश्किलें भी आईंतेज़ बारिश में टेंट उड़ गया, पेट दर्द में मेडिकल मदद नहीं मिली, कुछ जगहों पर भेदभाव का सामना करना पड़ालेकिन एक चीज़ जो हर जगह कॉमन रही, वो था लोगों का प्यार। छोटे गांवों के लोग उन्हें अपनी बेटी मानकर घर बुलाते, खाना खिलाते और हिम्मत बंधाते।

एक आंदोलन बन चुकी है सरस्वती की यात्रा

आज सरस्वती अय्यर सिर्फ एक ट्रैवलर नहीं हैं, बल्कि एक मुहिम बन चुकी हैं। वह लोगों को यह सिखा रही हैं कि यात्रा का मतलब सिर्फ घूमना नहीं होता, बल्कि खुद को समझना होता है। आज वह हज़ारों महिलाओं को अपने सोशल मीडिया पर प्रेरणा दे रही हैं कि ज़िंदगी में कभी भी कुछ शुरू किया जा सकता हैन उम्र मायने रखती है, नपैसा।